योग को किसी धर्म विशेष से न जोडे़ं


ऐसे शुरू करें अपनी दिनचर्या, योगासन और प्राणायाम से होगा लाभ

विकास थापटा
शब्दरेखा पड़ताल, शिमला।

स्वामी गौरीश्वरानंद पुरी
योग शरीर को ठीकठाक रखने की एक उत्तम कला है। इसे किसी धर्म विशेष से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। ऐसा करना संकीर्णता है। यह ठीक हवाई यात्रा की तरह है। जब हम जब हवाई जहाज में चढ़ते हैं तो नीचे सबकुछ एक समान दिखता है। संकीर्ण होना गलत है। जहां संकीर्णता है वहां मृत्यु है और जहां प्रसारण है वही जीवन है। इसे हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्मों के पैमाने पर रखकर मापना गलत होगा। योग का अर्थ है जोड़ना, मिलना, प्राप्त करना। महर्षि पतंजलि के अनुसार मन की वृत्तियों को शांत करना योग है। योग के आठ अंग हैं। ये यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि हैं। बगैर हिले-डुले शरीर को एक ही हालम में रखने की कला को आसन कहा जाता है। यह लगातार अभ्यास से ही संभव हैै। जब आसनबद्ध हो जाएं तो श्वास-प्रश्वास की गति का विच्छेद करने को प्राणायाम कहते हैं। संसार में प्राणायाम श्रेष्ठ तप है। जीवन में तीन बातों को अगर कोई अपना ले तो वह स्वस्थ होगा। ये आदर्श दिनचर्या, संतुलित भोजन और शुद्ध विचार हैं।


मैं अब दिनचर्या पर बात करता हूं। सुबह उठकर खाली पेट में कोसा पानी पीएं। सूर्योदय से पहले ब्रह्ममुहूर्त में उठें तो बेहतर होगा। अगर ऐसा न कर पाएं तो सवेरे जब भी सोकर उठें तो पहला कार्य उषापान का ही करें। वयस्क लोग एक लीटर पानी में एक नींबू निचोड़कर उसमें थोड़ा सेंधा नमक मिला लें। फिर उसके रस को पी लें। बच्चा आधा लीटर पानी में आधा नींबू निचोड़कर ही पिएं। उसके बाद शौच के लिए जाएं। ठीक मोशन बनाने लिए विपरीतकरणी मुद्रा आसन जैसे शलभासन, त्रिकोणासन, हस्तपादासन, योगमुद्रा आदि करें। इससे पेट पर दबाव पड़ेगा। फिर भी असर नहीं हो तो बाईं ओर बगल में तकिया रखकर लेटें। दाईं नासिका यानी सूर्य नाड़ी से ही सांस चलने दें।
शौच क्रिया से निवृत्त होकर स्नान कर लें। फिर सूर्य नमस्कार आसन जरूर करें। कम से कम तीन राउंड करने चाहिए। कम से कम पांच मिनट तक कपालभाति क्रिया करें। हर राउंड में साठ स्ट्रोक होने चाहिए। एक सेकेंड में एक स्ट्रोक ठीक रहेगा। साठ स्ट्रोक के बाद बीस सेकेंड का गैप दें। अब नाड़ी शोधन प्राणायाम जिसे सहज प्राणायाम भी कहते हैं उसे करें। सीधे हाथ के अंगूठे के साथ की तर्जनी और मध्यमा को मोड़ें। फिर अंगूठे से नासिका के दाएं छिद्र को बंद करें। सांस बाएं छिद्र से भीतर खींचें। अनामिका और कनिष्ठिका से नाक के बाएं छिद्र को दबाएं। नाक के दाएं छिद्र से अंगूठा हटाकर श्वास को इसी से वापस बाहर निकालें। इसके उलट दाएं छिद्र से सांस लेकर बाएं से छोड़ें। सांस इतना धीमे से लें कि इसकी आवाज तक नहीं आनी चाहिए। सांस खींचना और बाहर छोड़ना इसे पूरक और रेचक कहते हैं। इसके कम से कम पांच राउंड करें। उसके बाद शवासन पर लेटें। मंत्रोच्चारण कर ईश्वर का नाम लेकर अगर अन्य धर्मों से संबंधित हैं। वे अपने आराध्य का नाम लें जैसे मां दुर्गा, शिव भगवान, अल्लाह, गॉड आदि। ये सब एक हैं। यह शाम के समय भी कर सकते हैं, मगर इसके लिए पेट को हल्का रखें।

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