शिमला जिला में एक कोऑपरेटिव मूवमेंट खड़ा नहीं हो सका, हमारे नेता नहीं समझा सके इसकी स्पिरिट: नरेश चौहान

  • जैसे गांवों में बुवारा प्रथा थी, ठीक वैसे ही काम करती हैं सहकारी सभाएं

    हिमाचल प्रदेश में सेब का करीब पांच हजार करोड़ रुपये का कारोबार है। सेब की फसल प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से यहां लाखों लोगों को रोजगार देती है। हालांकि सेब के उत्पादन और इसे मार्केट तक पहुंचाने की लागत ज्यादा है। इससे बहुत से छोटे किसान-बागवान अच्छा मुनाफा नहीं कमा पाते हैं। चाहे सेब की पैंिकंग के लिए कार्टन की खरीद हो या फिर मंडियों में सेब की फसल पहुंचाने की लागत, ये बहुत ज्यादा हैं। इस लागत को घटाने में सहकारिता अहम भूमिका निभा सकती है। पर सेब बहुल शिमला जिला समेत अन्य जिलों में सहकारी सभाएं अपेक्षा के अनुसार विकसित नहीं हो पाई हैं। इस संबंध में शब्दरेखा संपादक विकास थापटा ने जिला शिमला कॉआपरेटिव फेडरेशन के अध्यक्ष और हिम प्रोसेस के पूर्व अध्यक्ष नरेश चौहान से बातचीत की। आपके समक्ष प्रस्तुत है उनसे हुई लंबी बातचीत के कुछ सारगर्भित अंश:

प्रश्न: इस बार सेब की कीमतें गिरीं। अच्छा मूल्य कैसे मिलेगा?
उत्तर: पूरे विश्व में और विशेषकर यूरोपियन देशों में केवल 60 फीसदी सेब ही बाजार में आता है। उससे अच्छे मूल्य मिलते हैं। बाकी 40 फीसदी सेब साइट पर ही प्रोसेस हो जाता है। हिमाचल प्रदेश में ए, बी, सी, डी आदि सभी ग्रेडों का सेब मार्केट में आता है। इससे पफसल को अच्छे दाम नहीं मिल पाते हैं। यहां सहकारिता का आंदोलन भी मददगार हो सकता है।

प्रश्न: सेब की बेहतर माकेर्टिंग के लिए क्या सुझाव हैं?
उत्तर:
हमें को-आपरेटिव मूवमेंट को खड़ा करना होगा। अगर एक-दो गांव के लोग एक सहकारी सभा बनाते हैं। वे एक ही जगह से पेटियां, कार्टन, दवाएं आदि खरीदते हैं। सेब को इकट्ठा ट्रकों में ले जाएं तो सेब की फसल में प्रयुक्त सामग्री सस्ती मिल सकती है। इससे बारगेनिंग पॉवर बढ़ जाती है। मान लीजिए, पांच सौ पेटी के बागवान को कहीं से पेटियां खरीदनी है तो महंगी मिलेंगी। अगर पचास हजार पेटियों की बल्क डिमांड होगी तो अच्छा डिस्काउंट मिलेगा। वे एक ही समय में एक स्थान पर सस्ते में कोई भी खरीद कर सकते हैं। पूरे विश्व में सेब की लागत हिमाचल प्रदेश में बहुत आ रही है। हमें लागत को घटाना होगा।

प्रश्न: शिमला जिला में को-आपरेटिव मूवमेंट की क्या स्थिति है?
उत्तर:
देखिए, कोआपरेटिव मूवमेंट को सरल शब्दों में समझना हो तो यह पुराने समय से रहा है। इसे ऐसे समझें कि गांवों में जैसे लोग घास काटने के लिए बुवारे जाते थे। यानी बहुत से लोग इकट्ठा होकर किसी एक आदमी का काम करते थे तो उसका काम एक ही दिन में निपट जाता था। यह मोटिवेशनल टूल की तरह काम करता था। कोई व्यक्ति किसी काम में अधिक सक्षम हो तो वह काम कर सकता है। इससे लागत या समय की भी बचत होती थी। जिसको जैसे वक्त लगे, वह दूसरे के घर बुवारा जाता था। हमीरपुर, ऊना, कांगड़ा, बिलासपुर जैसे प्रदेश के जिलों में कॉआपरेटिव मूवमेंट बहुत बढ़िया चल रहा है। इन जिलों में राष्ट्रीय बैंकों से ज्यादा पूंजी सहकारी बैंकों में है। इसी आंदोलन के तहत वहां उचित मूल्य की दुकानें, हार्डवेयर की दुकानें आदि बहुत अच्छी है। किसी के पास पैसा भी नहीं है तो उसे कम ब्याज पर पैसा दिया जाता है, जिससे उसका काम चलता रहे।

प्रश्न: बागवानी बेल्ट में क्यों कॉआपरेटिव मूवमेंट खड़ा नहीं हो पाया?
उत्तर: बागवानी बेल्ट में इस दिशा में सचमुच काम नहीं हो पाया। इसमें हमारे नेताओं की कमियां हैं। वे समझा ही नहीं पाए कि कैसे को-आपरेटिव मूवमेंट यहां खड़ा ही नहीं कर पाए। हमारे नेता इसकी स्पिरिट को नेताओं को समझा ही नहीं सके। यहां एक ऐसे नेता की जरूरत है जो इसे समझा सके। एक यहां आर्थिक विषमता भी है कि जो गरीब हैं, वे बहुत गरीब हैं। जो अमीर हैं, वे बहुत अमीर हैं।
प्रश्न: आप जिला फेडरेशन के चेयरमैन हैं। यहां कैसे काम हो रहा है?
उत्तर: इस फेडरेशन के तहत जिला की सहकारी संस्थाएं आती हैं। यह फेडरेशन उनके वेलपफेयर के लिए काम करती हैं। शिमला जिला में करीब साढे तीन सौ सोसाइटी हैं। फेडरेशन की सदस्य करीब 25 सोसाइटियां हैं। यहां सक्रिय सोसाइटियां करीब 50 हैं। बहुत सी डिफंक्ट भी हो गई हैं, क्योंकि वे बेहतरीन काम नहीं कर पा रही हैं। शिमला में कैलाश फेडरेशन बहुत अच्छी सोसाइटी है। इसका तो पेट्रोल पंप भी चल रहा है। जिला शिमला में दिक्कत यह रही है कि कोआपरेटिव सोसाइटियां ठीक से काम नहीं कर पाईं। रामपुर में भी दूध के बारे मेें एक सोसाइटी बनी, मगर बाद में ये व्यक्ति विशेष पर केंद्रित हो गई। कुछ सोसाइटी मेें लोगों को कर्जा दे दिया गया, मगर उसे समय पर वापस नहीं किया गया। बाद में वापसी के लिए नोटिस आए तो उन्हें बहुत ज्यादा पैसा लौटाना पड़ा। इससे लोगों ने समझा कि इसमें कोई लाभ नहीं।

प्रश्न: लोग कैसे सोसाइटी बना सकते हैं?
उत्तर: इसके लिए दस लोगों को जुटना होता है। जिला स्तर पर इसका पंजीकरण जिला पंजीयक सहकारी सभाएं के पास होता हैै। सहकारिता निदेशालय जाकर इसे समझा जा सकता है।

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