शब्दरेखा, शिमला।
विकास थापटा
शिमला।
राजधानी शिमला इन दिनों राजनीतिक चर्चाओं का अखाड़ा बना हुआ है। इंडियन कॉफी हाउस, आशियाना रेस्तरां से लेकर माल रोड, रिज मैदान आदि पर इन चर्चाओं की धींगामुश्ती चली हुई है। कोई सत्ता के पक्ष की बात करता है तो कोई विपक्ष की बात कर रहा है। कोई बीच की भी बात करता है, जो प्रदेश में तीसरे विकल्प के अभाव में निराश है।
इन तमाम चर्चाओं के केंद्र में शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज भी रह-रहकर आ जाते हैं। असल में शिमला शहर में तीन बार लगातार विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री सुरेश भारद्वाज को इन दिनों एक बहुत बड़ी जिम्मेवारी मिली हुई है। यह जिम्मा जुब्बल- नावर-कोटखाई यानी जेएनके में भाजपा के मिशन रिपीट को अंजाम देना है। जेएनके की यह जंग उनके लिए जेएंडके से कम नहीं है। वह इसलिए क्योंकि इस सेब बहुल हलके में भाजपा के बागी चेतन बरागटा ने एप्पल चुनाव चिन्ह लेकर निर्दलीय हुंकार भर दी है। जेएनके की यह विधानसभा सीट पूर्व मंत्री और तत्कालीन मुख्य सचेतक नरेंद्र बरागटा के देहावसान के बाद खाली हुई है। बरागटा का देहांत कोविड संक्रमण के बाद हो गया था। यहां उपचुनाव घोषित हुए तो भाजपा के प्रचार में चेतन बरागटा को संभावित प्रत्याशी के रूप में आगे किया गया। परिवारवाद के पैमाने में चेतन बरागटा का टिकट काटकर भाजपा हाईकमान ने इसे नीलम सरैईक को दे दिया है। नीलम सरैईक तीन बार जिला परिषद सदस्य रह चुकी हैं। वह नरेंद्र बरागटा के रहते हुए भी वर्ष 2017 के चुनाव में टिकट मांग रही थीं। अब जब नरेंद्र बरागटा नहीं रहे तो नीलम को अपनी दावेदारी पेश करने का अचूक अवसर मिल गया। नीलम सरैईक शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज की नजदीकी नेता हैं। नीलम को जुब्बल-कोटखाई में भाजपा की चर्चित नेत्री के रूप में उभारने में सुरेश भारद्वाज की अहम भूमिका मानी जाती रही है। इसी बात पर स्वर्गीय नरेंद्र बरागटा और उनके समर्थक भारद्वाज से नाराज भी रहते आए हैं। इस बार जिस तरह से चेतन बरागटा का टिकट कटा है, उससे भी इस क्षेत्र के बरागटा समर्थकों में एक धारणा बन गई है कि यह टिकट सुरेश भारद्वाज के कारण ही कटा है। टिकट कटने की इस घटना को कुछ सप्ताह पहले सुरेश भारद्वाज की नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से हुई मुलाकात से जोड़कर देखा जा रहा है। हालांकि, भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व स्पष्ट कर चुका है कि इस बार के उपचुनाव में नीतिगत रूप से परिवारवाद को दरकिनार किया गया है। टिकट काटे जाने से रूठे चेतन के समर्थकों ने तो नामांकन वाले दिन भारद्वाज के खिलाफ नारेबाजी तक कर ली। अब निर्दलीय ताल ठोंककर चेतन बरागटा ने भाजपा की ही नहीं, शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज की भी नींद उड़ा दी है। भारद्वाज को भाजपा ने इस क्षेत्र का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया है। वह शिमला जिला से भी भाजपा के अकेले बडे़ नेता हैं। किसी कारणवश हिमाचल प्रदेश में भी अगर उत्तराखंड, कर्नाटक, गुजरात आदि में मुख्यमंत्री बदलने की नौबत आई तो सुरेश भारद्वाज मुख्यमंत्री बनने के सशक्त दावेदारों में से होंगे। उनकी संघ की पृष्ठभूमि रही है। वह भाजपा प्रदेशाध्यक्ष, विधानसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं। मगर अगर जुब्बल-कोटखाई में भाजपा के वोट बंटने की स्थिति में वह हाईकमान की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाते हैं तो यह उनके लिए किसी झटके से कम नहीं होगा। कांग्रेस प्रत्याशी रोहित ठाकुर या चेतन बरागटा में में से कोई भी अगर झटका देता है तो आगे कुआं पीछे खाई के हालात होंगे, इसलिए वह नीलम को जिताने के लिए रात की नींद और दिन का चैन को खो चुके हैं और लगातार फील्ड में जुटे हैं। हाईकमान के पास भी उनका रिपोर्ट कार्ड सही नहीं जाएगा। ऐसे में जुब्बल-कोटखाई का विधानसभा उपचुनाव भारद्वाज की कड़ी परीक्षा होगा। प्रदेश में चार सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। इनमें मंडी लोकसभा सीट के अलावा जुब्बल-नावर-कोटखाई, अर्की और फतेहपुर विधानसभा की सीटें हैं। अर्की और फतेहपुर में तो पहले से ही कांग्रेस के विधायक थे, यहां भाजपा जीतती है तो वह हासिल करेगी, मगर मंडी में भाजपा सांसद और जुब्बल-कोटखाई में भाजपा विधायक रहे हैं। इन सीटों पर भाजपा ने या तो सीटें बचानी हैं या गंवानी हैं।